
– संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
दुनियावी जीवन अगर इन शब्दों की तरफ ध्यान करें तो ये हमें क्या पता चलता है? हममें से ज्यादातर लोग खुशी पाने के मकसद से ही जीवन यापन करते हैं। इन खुशियों को प्राप्त करने के लिए हम दुनियावी गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं। जैसे कि हम अपना जीवन बाल अवस्था से शुरू करते हैं तो उस समय हमें रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा और दोस्ती की ज़रूरत होती है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद हम किसी नौकरी की तलाश करते हैं और फिर हमारा अपना एक परिवार होता है। तब हमें जीवन जीने के लिए सारी चीज़ें चाहियें होती हैं। जैसे कि रहने के लिए घर, खाने के लिए भोजन, आने-जाने के लिए वाहन और परिवार या खुद के लिए धन।
हमारा शेष जीवन भी यह सुनिश्चित करने में व्यतीत हो जाता है कि हमारेे पास जीने के लिए पर्याप्त धन है या नहीं। इसके लिए हम वह कार्य करते हैं जो दुनिया में जीने के लिए ज़रूरी है। इन्हीं कार्यों में हम खुशी की तलाश करते हैं। हममें से कोई भी दुःखी होना नहीं चाहता। हम यही मानते हैं कि जितना अधिक हमें दुनियावी चीज़ें हासिल होंगी जोकि धन से प्राप्त होती हैं, उतना ही अधिक हमें खुशी प्राप्त होगी। कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि उन्हें खुशी की प्राप्ति प्रसिद्धि, नाम, सत्ता और अधिक लाभ प्राप्त करने से होगी।
एक अध्ययन से यही पता चला है कि जो लोग धनवान, प्रसिद्ध और ताकतवर होते हैं या जिन्होंने सारी दुनियावी चीज़ें हासिल की होती हैं लेकिन फिर भी वे दुःखी ही रहते हैं। खुशी देने वाली हर संभव चीज़ हासिल करने के बाद भी जब वे चीज़ें उनसे दूर चली जाती हैं, खो जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं तो वे दुःखी हो जाते हैं। सच्चाई यही है कि दुनिया की कोई वस्तु हमेशा रहने वाली नहीं होती। हर चीज़ एक सीमित समय के लिए ही है। आखिरकार जब हमारा समय समाप्त हो जाएगा तो हमें यह संसार छोड़ना ही पड़ेगा। तब हम अपने साथ यहँा से कोई भी चीज़ साथ नहीं ले जा सकते। तो फिर हम वास्तव में खुश कैसे रह सकते हैं?
हमें स्थायी खुशी केवल अंतर के खज़ानों से जुड़कर ही मिल सकती है, जोकि भौतिक नहीं आध्यात्मिक है। आध्यात्मिक तौर पर हम उस पिता-परमेश्वर का अंश हैं जोकि प्रेम, चेतनता, खुशी और आनंद से भरपूर हैं। जब हम ध्यान-अभ्यास द्वारा उस आंतरिक शक्ति से जुड़ते हैं तब हम अपने अंतर में दिव्य-प्रेम, और खुशी के महासागर में तैर सकते हैं। इससे हम हमेशा परमानंद और शांति की स्थिति में रहते हैं क्योंकि हम अपने अंतर में आध्यात्मिक प्रेम के óोत पिता-परमेश्वर से जुड़ जाते हैं। फिर बाहर की परिस्थितियँा चाहें कैसी भी हों, चाहे हम गरीब हों या अमीर, प्रसिद्ध हों या अप्रसिद्ध, जीवन में हम किसी ऊँचे मुकाम पर हों या न हों, हम हमेशा खुश रहते हैं।
अपनी आंतरिक खुशी और दिव्य-प्रेम से हम इस दुनिया की सभी परिस्थितियों में शांत रहते हैं। फिर हम अपने सभी कर्त्तव्यों को पूरा करते हैं, जैसे कि पैसा कमाना, नौकरी करना, परिवार को सहारा देना, दूसरों की सहायता करना। ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम एक ऐसी अवस्था पा लेते हैं, जिसमें कि हम हमेशा आनंदित और शांतिपूर्ण रहते हैं।
ध्यान-अभ्यास और आध्यात्मिक जीवन हमें बाहरी जीवन में भी हमारी मदद करता है। इसके द्वारा हम अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भी पूरा करते हैं जोकि अपने आपको जानना और पिता-परमेश्वर को पाना है। अध्यात्म हमें सिखाता है कि हमें केवल सुनी-सुनाई बातों पर ही नहीं रहना चाहिए लेकिन ध्यान-अभ्यास के द्वारा खुद इसका आंतरिक अनुभव प्राप्त करना चाहिए। फिर हम कह सकते हैं कि ध्यान-अभ्यास वह तरीका है जिससे कि हम अपने अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति का अनुभव कर सकते हैं। अगर कोई सच्चाई से आत्म-ज्ञान, पिता-परमेश्वर और उनके आंतरिक मंडलों के बारे में जानना चाहता है तो वह यह सभी अनुभव ध्यान-अभ्यास द्वारा प्राप्त कर सकता है। जिससे कि हम वास्तव में खुश रह सकते हैं।