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केदारनाथ में रील बनाने वाले को फटकार लगाने के पीछे का असली कारण निकलकर आया सामने

उत्तराखंड/ जिस प्रकार से इंदौर के 44 लड़के और 18 लड़कियों का ढोल ग्रुप केदारनाथ में प्रदर्शन कर अभिवादन कर रहा था। एक सज्जन पुरुष द्वारा उनकी आस्था को इस तरह से ठेस पहुंचाना क्या ठीक होगा ? क्या केदारनाथ में इस तरह से अभद्र व्यवहार करने पर कोई वापस दोबारा आएगा। उन युवकों के दिल में जो ठेस पहुंची होगी वह अपने शहर जाकर क्या बताएंगे। कोई नेपाल से आता है, कोई असम से आता है और देश के कोने-कोने से हमारे उत्तराखंड के सर्वोच्च धाम केदारनाथ के दर्शन करने के लिए क्या इस तरह से अब कोई आएगा क्या हमारे उत्तराखंड के सर्वोच्या धाम श्री केदारनाथ धाम धीरे-धीरे खाली हो जाएगा।

अगर आप भी ऐसा सोच रहे है तो कृपया खबर को पूरा पड़े। फटकार लगाने का पुरोहित जी का तरीका गलत था परंतु इसके पीछे बहुत बड़ी वजह छिपी है। आइए जानते है।

गौरतलब है कि इन ब्लॉगर/ रील बनाने वालो की वजह से वहां पर ढोल नगाड़ों के साथ रौनक पाई जा रही हैं और इन ब्लॉगर की वजह से ही लोगों को घर बैठे बैठे दर्शन करने का भी मौका मिलता है जो बेचारे धाम तक नहीं पहुंच पाते और साथ ही रास्ता बताने में भी यह बहुत ही मददगार साबित होते हैं।

जिस प्रकार से पुरोहित द्वारा रील बनाने वालों को फटकार लगाते हुए दिखाया गया, वीडियो देखने के बाद कोई तो उन युवाओं के लिए जरुरी सबक बता रहा है, जो केवल रील बनाकर फेमस होने के लिए धाम के आगे वीडियो बना रहे, वहीं, कई लोग उन युवाओं की आस्था बता रहे हैं, जो पैदल चलकर वाद्य यंत्रों के साथ भोलेनाथ के सामने अपनी आस्था व कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।

• पुरोहित द्वारा बड़ी तादात में ढोल नगाड़े बजाने से रोकने के पीछे क्या है असली वजह ?

केदारनाथ मंदिर एक उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित है। यह एक संवेदनशील क्षेत्र है। ढोल नगाड़ों से पूरा धाम गूंज रहा है, जो हिमालय की भौगोलिक प्ररिस्थिति के अनुकूल ठीक नहीं है, जबकि यहां पर ऐसा करना उचित नहीं है। हिमालय के इको सिस्टम पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

रील/ ब्लॉगर को यह समझना होगा कि हाई एल्टीट्यूड वाले क्षेत्र में लगातार अनियोजित गतिविधि हिमालय की सेहत के लिए घातक है। इन क्षेत्रों की कैरिंग कैपेसिटी इतनी नहीं है, हिमालय का इको सिस्टम ऐसी गतिविधियों को सहन नही कर पाएगा। इसके साथ साथ केदारनाथ क्षेत्र एक वन्य अभ्यरण भी है। यहां कई वन्यजीवों की कई ऐसी प्रजातियां भी है, जो विलुप्ती की कगार पर है। इनके जीवन पर भी इन सबका बुरा असर पड़ रहा है।

स्थिति को देखते हुए प्रशासन व सरकार को संज्ञान लेना होगा की यात्रियों की इतनी अति भारी भरकम बढ़ती संख्या के साथ यहां के ईको सिस्टम का ख्याल रखा जाना भी आवश्यक है। हिमालय में ध्वनी एक निश्चित डेसिबल तक होनी चाहिए। उच्च कोटी के ध्वनी यंत्रों को बजाना भी वर्जित करना होगा। हेलीकाप्टरों की अनियंत्रित उड़ानों से भी यहां के पारिज्ञिस्थतिकी के साथ ग्लेश्यिरों पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

रील बनाने वाली के साथ साथ पूरे भारतवर्ष को 2013 की केदारनाथ आपदा को भूल नहीं जाना चाहिए। फिर से एक बड़ी अनहोनी उत्तराखंड सेहन नही कर पायेगा।

 

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