उत्तराखंडदेहरादून

जलवायु परिवर्तन और पर्वतीय समुदायों के लिए इसके मायने विषय पर दून पुस्तकालय में हुई कार्यशाला

देहरादून. जलवायु परिवर्तन और उत्तराखण्ड के पर्वतीय समुदायों के लिए इसके क्या मायने हैं। इस विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला आज दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में हुई. इस कार्यशाला का आयोजन उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान अल्मोडा और दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र ने किया।
इस महत्वपूर्ण कार्यशाला में हिमालयी पारिस्थितिकी और स्थानीय समुदायों में संस्थान के कार्य तथा हाल ही में किए गए क्षेत्रीय अध्ययन से उभरे मुद्दों पर चर्चा की गई. इसमें बड़ी बसासतों और शहरीकरण पर करीबी नजर डाली गई। क्षेत्र अध्ययन से प्राप्त तथ्यों का प्रस्तुतीकरण स्लाइड शो के माध्यम से डॉ. ललित पाण्डे और अनुराधा पाण्डे ने संयुक्त रुप से किया।

यह अध्ययन अल्मोड़ा में हरित-आर्थिक विकास, उत्सर्जन, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता की पड़ताल करता है। लोगों की जीवन की वास्तविकताओं पर आधारित यह जमीनी अध्ययन विशिष्ट अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन अनुसंधान और साहित्य पर मौजूदा विमर्श में नई आवाज़ें जोड़ने की उम्मीद रखता है।

इस कार्यशाला में नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी और कमजोर समुदायों के लिए जलवायु परिवर्तन के निहितार्थों से संबंधित कुछ निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया प्राप्त की गई. खासकर कृषि से संबंधित आजीविका, बदलते ग्रामीण परिदृश्य और बढ़ते शहरीकरण से संबंधित पर गहराई से बात हुई। इसमें सहभागी, सशक्त जलवायु कार्रवाई की दिशा में काम करने के लिए जलवायु अनुसंधान की ज्ञानात्मक पद्धति में एक आदर्श बदलाव की वकालत करने पर जोर दिया गया.

चर्चा के दौरान जलवायु परिवर्तन पर जमीनी स्तर के दृष्टिकोण को सामने लाने और समुदायों और हितधारकों की आवाज़ को भी मुख्य धुरी में लाने की बात सामने आयी और विकेन्द्रीकृत स्तरों पर नीति निर्माताओं के साथ निरंतर सहयोगात्मक बातचीत को प्रोत्साहित करने का सुझाव आया. सभी के लिए एक ही आकार के समाधान या स्थानीय अनुभव से निकाले गए दूरस्थ विश्लेषण को हवा में उछालने के विपरीत, संदर्भ में निहित विचारशील चिकित्सकों द्वारा गहन शोध को प्रोत्साहित करने की बात कही गई।

वक्ताओं ने ऐसे समाधान विकसित करने की संभावना का पता लगाने की बात पर जोर दिया जो जलवायु संबंधी चिंताओं को पारिस्थितिकी,अर्थव्यवस्था और समानता को मजबूत करने पर आधारित सतत विकास के साथ एकीकृत कर सकें।

उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. ललित पाण्डे ने कार्यशाला का उद्देश्य पर जानकारी देते हुए कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से अध्ययन, नीति और व्यवहार के क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एक साथ लाना है, जो इस बात के प्रति प्रतिबद्ध और जानकार हों कि जलवायु के कारण जीवन और आजीविका पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, विशेष रूप से जलवायु के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील पारिस्थितिकी में सबसे कमजोर स्तर के समुदायों के लिए।
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कार्यशाला के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के अध्यक्ष प्रो. बी.के. जोशी ने स्वागत एवं परिचय दिया। उसके बाद स्थानीय और शुद्ध उत्सर्जन, भूगोल और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव . पर उत्तराखण्ड सेवा निधि की प्रस्तुति के बाद चर्चा हुई. इस सत्र की अध्यक्षता राज शेखर जोशी, उपाध्यक्ष सेतु आयोग, उत्तराखंड ने की.

द्वितीय सत्र में ऊर्जा संक्रमण: सौर ऊर्जा पर प्रस्तुति के बाद चर्चा की गई इस सत्र की अध्यक्षता एन. रविशंकर आईएएस (सेवानिवृत्त) पूर्व मुख्य सचिव, उत्तराखंड ने की.

सत्र के तीसरे चरण में जलवायु परिवर्तन, संवेदनशीलता और शहरीकरण: ग्रामीण शहरी परिदृश्य पर चर्चा हुई.

अन्तिम चतुर्थ सत्र में अध्ययन और नीति एवं भावी अनुसंधान पर इसके निहितार्थों पर चर्चा की गई. इसमें जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के प्रभावों के अनुकूलन,आजीविका के लिए निहितार्थ शहरीकरण की चुनौतियाँ पर योजना, सामग्री, तकनीक और जलवायु प्रतिरोधी समाज के लिए क्षमता निर्माण जैसे सुझाव दिये गये। इस सच की अध्यक्षता इन्दु कुमार पांडे आईएएस (सेवानिवृत्त) पूर्व मुख्य सचिव, उत्तराखंड ने की।कार्यक्रम में उत्तराखण्ड पलायन आयोग के अध्यक्ष एस.एस. नेगी भी उपस्थित रहे।

उल्लेखनीय है कि अल्मोड़ा स्थित उत्तराखंड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान एक गैर-सरकारी संगठन है जो पिछले 38 वर्षों से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में कार्यरत है। यह संस्था ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवहारिक समुदायों का विकास करके पर्यावरण शिक्षा, लैंगिक समानता, आजीविका और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर काम कर रही है। पिछले एक दशक में जलवायु-अनुकूल कृषि (ICAR 2011-2014), लैंगिक समानता और आपदा (ICSSR 2014-2017) और व्यवहारिक समुदायों तथा लचीले ग्रामीण पारिस्थितिकी तंत्र (MoEF&CC, NMHS-2017-2019) पर शोध भी किया है।

इस कार्यशाला में पूर्व केन्द्रीय सचिव भारत सरकार विभापुरी दास अनूप नौटियाल, डॉ. पीयूष रौतेला, , डॉ. मंजरी मेहता, पूर्व वन अधिकारी जे के रावत, एस.पी. सुबुद्धि, वेंकर जय गोपी, अमिता शर्मा,कर्नल आलोक जुयाल, डा.पंकज नैथानी, चन्द्रशेखर तिवारी, हिमांशु आहूजा, डॉ.मालविका चौहान, डॉ.राजेन्द्र कोशियारी, बिजू नेगी, अजय शर्मा, डॉ. योगेश धस्माना, अजय जोशी, कर्नल एस.एस. रौतेला, शहाब नक़वी, सुंदर सिंह विष्ट, जगदीश सिंह महर, सहित कई सामाजिक कार्यकर्ता व दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र तथा अन्य संस्थाओं के युवा छात्र शामिल रहे.

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