उत्तराखंडदेहरादून

हाईकोर्ट में कालागढ़ प्रभावितों के विस्थापन मामले में सुनवाई

नैनीताल। हाईकोर्ट ने कालागढ़ डैम के समीप वन विभाग व सिंचाई विभाग की भूमि पर अवैध रूप से रह रहे सेवानिवृत्त व अन्य करीब 400 से 500 परिवारों को हटाये जाने के मामले पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद राज्य सरकार से इस मामले में 5 मई तक एक शपथ पत्र पेश करने को कहा है। सुनवाई पर राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया गया कि पूर्व के आदेश पर सरकार ने यूपी सरकार के चीफ सेक्रेटरी से वार्ता कर इन्हें विस्थापिरत करने की अपनी बात रखी। लेकिन यूपी सरकार ने इन्हें स्थापित करने से इनकार कर दिया।
राज्य सरकार की तरफ से यह भी कहा गया कि कालागढ़ का अधिकांश क्षेत्र उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन है, वही इन्हें विस्थापित करें। इसपर कोर्ट ने समिति से कहा कि आप अपनी याचिका यूपी की हाईकोर्ट में दायर करें। इसका विरोध करते हुए समिति की तरफ से कहा गया कि वे उत्तराखंड के मूल निवासी हैं। इसलिए उनकी याचिका को यहीं सुना जाए। उन्हें हटाये जाने का नोटिस भी जिला अधिकारी पौड़ी के द्वारा ही दिया गया है ना कि यूपी सरकार ने दिया है। जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को इस पर शपथ पत्र पेश करने को कहा है।
मामले के अनुसार कालागढ़ जन कल्याण उत्थान समिति ने उच्च न्यायलय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि तत्कालीन यूपी सरकार ने 1960 में कालागढ़ डैम बनाए जाने के लिए वन विभाग की कई हजार हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण करके सिंचाई विभाग को दी थी। साथ में यह भी कहा था कि जो भूमि डैम बनाने के बाद बचेगी उसे वन विभाग को वापस किया जाएगा। डैम बनने के बाद कई हेक्टेयर भूमि वापस की गई, लेकिन शेष बची भूमि पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों व अन्य लोगों ने कब्जा कर दिया। अब राज्य सरकार 213 लोगों को विस्थापित कर रही है। जबकि वे भी दशकों से उसी स्थान पर रह रहे हैं और उनको विस्थापित नहीं किया जा रहा है। उन्हें हटाने का नोटिस दिया गया है।

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