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29 वर्षीय मरीज की डॉक्टरों ने बचाई जान

  • दुर्लभ ट्यूमर से बंद हो रही श्वास नली,
  • 29 वर्षीय मरीज का ऑक्सीजन स्तर था 70प्रतिशत, सांस फूलने के साथ सीने में तकलीफ के साथ पहुंचा अस्पताल
  • ट्यूमर ने मरीज की श्वास नली को कर दिया था अवरुद्ध, जान का जोखिम भी बढ़ा

देहरादून। दुर्लभ ट्यूमर से सांस नली (श्वास नलिका) बंद होने की वजह से एक मरीज को गंभीर स्थिति में दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टरों ने मरीज को नया जीवन दिया है। 29 वर्षीय मरीज को सांस फूलने के साथ साथ सीने में तकलीफ थी जिसके चलते उसे अस्पताल भर्ती कराया गया। डॉक्टरों के अनुसार, अस्पताल आने के बाद जब मरीज के ऑक्सीजन स्तर की जांच हुई तो पता चला कि उसे महज 70 प्रतिशत ऑक्सीजन ही मिल पा रही है। ट्यूमर ने उसकी नली को काफी हद तक अवरुद्ध कर दिया था। डॉक्टरों के पूछने पर रोगी ने बताया कि शुरुआत में उसे सीने में दर्द और गर्दन में धीरे-धीरे सूजन आ रही थी। दो महीने से भी लंबे समय तक वह परेशानी झेलने के बाद एक नजदीकी चिकित्सक से परामर्श लेने पहुंचा, जहां उसे टीबी (क्षय रोग) का निदान किया, लेकिन टीबी की दवा से उसकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ। फिर ब्रोंकोस्कोपी हुई जिसमें पता चला कि श्वास नली में एक बड़े ट्यूमर के कारण 80 प्रतिशत रुकावट है। सांस फूलने और ऑक्सीजन के स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण उनकी हालत बिगड़ने पर फरीदाबाद के एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन यहां भी कोई राहत नहीं मिली और फिर मरीज इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल पहुंचा। यहां श्वसन और क्रिटिकल केयर मेडिसिन के वरिष्ठ डॉ. निखिल मोदी की देखरेख में रोगी को भर्ती कराया गया। इस बीच डॉक्टरों ने सबसे पहले मरीज के ऑक्सीजन स्तर को स्थिर करने का प्रयास किया। साथ ही, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में नाक, कान और गला सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ सुरेश सिंह नरूका ने ट्यूमर की जांच की गई और तत्काल इसे हटाने के लिए सर्जरी की सिफारिश की।
डॉ. सुरेश सिंह नरूका ने कहा कि जब मरीज को अपोलो में भर्ती कराया गया तो उसके ट्यूमर का पता चला जिसने गर्दन को 50 प्रतिशत तक ब्लॉक कर दिया था। ट्यूमर पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता थी, क्योंकि इसमें मेटास्टैटिक होने और शरीर के अन्य भागों में फैलने की क्षमता थी। इसलिए ऑक्सीजन के स्तर को स्थिर करने के बाद वायु मार्ग को बनाए रखने के लिए तत्काल सर्जरी की। उन्होंने बताया कि यह सर्जरी काफी चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि ट्यूमर का आकार बड़ा था और फेफड़ों में हवा जाने के लिए कोई जगह भी नहीं थी। जब भी वे कोई उपकरण की सहायता लेते तो रोगी की संतृप्ति दर तेजी से गिरने लगती थी। बहरहाल, इस सर्जरी प्रक्रिया में तीन घंटे का समय लगा और ट्यूमर को सफलतापूर्वक बाहर निकालने में सफल रहे।ऑपरेशन के बाद रोगी को आगे की निगरानी के लिए आईसीयू में रखा और जैसे ही उसे मैकेनिकल वेंटिलेशन से सफलतापूर्वक छुड़ाया, बीते नौ नवंबर को छुट्टी दे दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि सर्जरी के बाद विंड पाइप मास की बायोप्सी में लिम्फोइड कोशिकाओं के कैंसर का पता चला, जिसे लिम्फोमा कहा जाता है। अगर चिकित्सा स्थिति की बात करें तो विंड पाइप में लिम्फोमा का मिलना बेहद दुर्लभ है क्योंकि इसमें सभी विंड पाइप ट्यूमर का केवल 0.2 प्रतिशत से 0.3 प्रतिशत हिस्सा होता है। लिम्फोमा की वजह से मरीज को कीमोथेरेपी लेने की सलाह दी गई। वहीं, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. निखिल मोदी ने बताया कि प्रारंभिक और सही निदान सकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम के लिए सबसे अच्छा अवसर है। कभी-कभी, रोगी को चिकित्सा देखभाल में देरी होने से स्थिति जानलेवा हो सकती है। उत्तर प्रदेश के मूल निवासी 29 वर्षीय इस मरीज के साथ भी ऐसा ही हुआ। इलाज में देरी और गलत निदान से ट्यूमर बढ़ गया और श्वास नली में लगभग पूरी तरह से रुकावट हो गई। उनकी हालत बिगड़ने के साथ उन्हें 29 अक्टूबर, 2022 को इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया था। वायुमार्ग को बनाए रखने के लिए उन्होंने ट्यूमर हटाने की सर्जरी के बाद तत्काल ट्रेकियोस्टोमी और ब्रोंकोस्कोपी की। कीमोथेरेपी के माध्यम से लिम्फोमा के फॉलोअप और प्रबंधन के लिए मरीज अभी भी अस्पताल आ रहा है।

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