उत्तर प्रदेशशिक्षासामाजिक

हिंदी को ओढते बिछाते थे डाक्टर प्रेमचंद जैन।

बिजनौर – ( नजीबाबाद ) नजीबाबाद से बेहद लगाव रखने वाले हिंदी को ओढ़ने बिछाने वाले छोटे कद की बहुत बड़ी शख्सियत हिन्दी प्रेमी डाक्टर प्रेमचंद जैन को कौन भूल सकता है। कल उनकी पुण्यतिथि थी। साहू जैन महाविद्यालय के सेवानिवृत्त हिंदी विभागाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डाक्टर प्रेमचंद जैन सेवानिवृत्ति के बाद वो कुछ दिन सिंगापुर अपने पुत्र के साथ रहे। मगर नजीबाबाद और उन के शिष्यो का प्यार उन्हें नजीबाबाद खींच लाया। उन्होने हिमालयन कालोनी में मकान बनाया और अक्सर जब उन का दिल करता वो नजीबाबाद आ जाते। और अपने शिष्यो को फोन कर देते। बस कुछ ही पल में उनके शिष्य उन के इर्दगिर्द जमा हो जाते वो सब को गले लगा कर अपनी औलाद जैसा प्यार देते थे। प्यार के साथ साथ जब उन्हें किसी गलत बात पर गुस्सा आता था तो ऐसा लगता था मानो कोई ज्वालामुखी फट गया हो। उनकी आंखे लाल हो जाती थी। डाक्टर प्रेमचंद जैन जी छोटे कद के जरूर थे, मगर वह एक बड़ी शख्सियत थे। पोथी पढ़-पढ़ जग भया, पंडित बना न कोय कोई ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होये, अक्सर कबीर का ये दोहा अपने परिचय के तौर पर सुनाने वाले प्रेमचंद जैन बेहद संजीदा और उसूलों के पाबंद थे। अपनी मोपेड पर जब वो शहर के मुख्य मार्गो से गुजरते थे तो उन्हें देखकर उन के शिष्य हाथ बांध कर सर झुका कर खड़े हो जाते थे। प्रेमचंद जैन क्लास में पढ़ाने की बजाये सुनने पर ज्यादा जोर देते थे। प्रेमचंद जैन अपने तमाम छात्र-छात्राओं से पारिवारिक संबंध रखते थे। और जब कभी मिलते थे तो नाम लेकर पुकारा करते थे। डाक्टर प्रेमचंद जैन ने साहू जैन महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष रहते हुए छात्र-छात्राओं को बड़े ही प्रेम से हिंदी की शिक्षा देने के साथ हिंदी को बढ़ावा देने के लिए काफी संघर्ष किया। हिंदी की काव्य गोष्ठीयो, विचार गोष्ठीयो के कार्यक्रमों में वो अक्सर बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। हिन्दी की साहित्यिक संस्था मालनी का उन्होने गठन किया। जिस के अंतर्गत उन्होंने नजीबाबाद में हिंदी के अनेक कार्यक्रम भी आयोजित कराये। पुस्तकें भी लिखी। चंद्रा ग्रुप की ओर से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय माता कुसुम कुमारी हिंदीत्तर हिन्दी सम्मान के आयोजन में भी महत्वपूर्ण सहयोग किया। हिंदी के कार्यक्रम में उनके साथ अन्तर्राज्वाला समाचार पत्र के सम्पादक वीरेंद्र जैन पहाड़ वाले व इम्फाल यूनिवर्सिटी के हिंदी विभागाध्यक्ष व साहित्यकार देवराज भी जुड़े रहे। मुझे याद है अपनी शादी का निमंत्रण जब मैं उन्हें देने गया तो वो शादी निमंत्रण देख बहुत खुश हुए क्यों कि वो हिंदी और उर्दू में छपा था। मुस्कुराते हुए बोले इस हिन्दी प्रेम के निमंत्रण को मैं स्वीकार करता हूं। और बीमारी के बावजूद रिक्शा में बैठकर मेरे वलीमे में उन्होने शिरकत की और मुझे आर्शिवाद दिया।  मेरी और तमाम उनके चाहने वालो की ओर से प्रिय गुरु जी को भावभीनी श्रद्वांजलि।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button