
कहा, यह कोर्ट और रेलवे के बीच की बात, राज्य सरकार इसमें कोई पार्टी नहीं
देहरादून। हल्द्वानी के वनभूलपूरा में रेलवे की जमीन से हटाए जाने वाले अतिक्रमण के मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि मामला न्यायालय के अधीन है। ऐसे में अभी उस कुछ कहना जल्दबाजी होगा। उन्होंने कहा कि यह न्यायालय और रेलवे के बीच की बात है। राज्य सरकार इसमें कोई पार्टी नही है। उच्चतम न्यायालय का जो भी निर्णय आएगा। राज्य सरकार उस पर काम करेगी। सीएम धामी ने कहा कि जो भी कोर्ट का फैसला होगा, वह सर्वमान्य होगा और सरकार उस फैसले पर अमल करेगी। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के द्वारा इस मामले पर आज किए गए मौन उपवास पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सभी लोगों को कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार भी उसी राह पर चलने का काम करती है। कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने भी कहा कि सभी लोगों को हल्द्वानी मामले में कोर्ट के दिए गए निर्णय का सम्मान करना चाहिए।
वनभूलपुरा मामले मे जबाबदेही से बचने की कोशिश कर रही कांग्रेसःभट्ट
देहरादून ।भाजपा ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा रेलवे भूमि विवाद के लिए कांग्रेस को पूरी तरह से जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जबाबदेही से बचने के लिए आरोप प्रत्यारोप तथा मुद्दे का राजनीतिकरण करना चाहती है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि इसमें राज्य सरकार पक्ष नही है और न ही भाजपा की कोई भूमिका है। उन्होंने कहा कि इसमे कांग्रेस इसलिए दोषी है क्योंकि, उसने समय रहते कोई प्रयास नहीं किया और मामला कोर्ट में जाने दिया। पार्टी और सरकार इस पूरे मामले को राजनैतिक चश्मे से नहीं देखती है। मामला न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए सभी पक्षों को उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह विवाद लंबे समय से चल रहा है, लेकिन कांग्रेस समेत पूर्ववर्ती सरकारों ने कभी विवाद के हल का प्रयास नहीं किया। आज इस प्रकरण में राजनैतिक बयानबाजी करने वाले कॉंग्रेस के तमाम नेता किसी न किसी रूप में तत्कालीन सरकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। ऐसे में उनके अनुसार यदि, कुछ गलत हो रहा था तो उन लोगों ने कोई बीच का रास्ता नही निकाला जो उसकी मंशा पर सवाल है। प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है और 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में भी इस प्रकरण से संबन्धित याचिका पर सुनवाई होनी है। लिहाजा सभी पक्षों को राजनीति करने के बजाय न्यायालय के फैसले का इंतजार करना चाहिए।