उत्तराखंड

बीबी अमातुस सलामः स्वतंत्रता सेनानी और सांप्रदायिक सद्भाव की समर्थक

एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी और महात्मा गांधी की दत्तक बेटी के रूप में करीबी बीबी अमातुस सलाम का जन्म 1907 में पंजाब के पटियाला में हुआ था, इसके अलावा, उनके बड़े भाई मोहम्मद अब्दुर राशिद खान, एक और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रता संग्राम के गांधीवादी तरीके और अहिंसा में दृढ़ विश्वास के लिए प्रतिबद्ध, उन्होंने देश के लोगों की सेवा करने का फैसला किया और खादी आंदोलन में शामिल हो गईं। बाद में वे 1931 में गांधीजी के सेवा ग्राम आश्रम में शामिल हुईं और गरीबोंध्दलितों को समर्पित एक कठोरध्अनुशासित जीवन के अपने सख्त नियम का पालन किया। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान बीबी को बीमार होने  के बावजूद 1932 में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। बाद में वे सेवा ग्राम आश्रम में गांधीजी की निजी सहायक बनीं। स्वतंत्रता प्राप्त करने के अलावा, सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के साथ-साथ हरिजनों और महिलाओं के कल्याण के लिए काम करना उनकी महत्वाकांक्षाएं थीं। बीबी गांधीजी के साथ दंगा ग्रस्त ‘नोआखाली’ गईं और उन क्षेत्रों में स्थिति को सामान्य करने के लिए बीस दिनों का सत्याग्रह किया। आजादी के बाद, बीबी अमातुस सलाम ने किसी भी पद के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और सक्रिय राजनीति से दूर हो गईं और खुद को लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। वह खान अब्दुल गफ्फार खान के साथ उनके निजी सहायक के रूप में भी गई, इसके अलावा, राष्ट्रीय एकता और मैत्री को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध थीं। 1962, भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, बीबी ने अपने दत्तक पुत्र (क्योंकि वह अविवाहित रही और देश के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया) सुनील कुमार के साथ पहाड़ और खतरनाक युद्ध क्षेत्र तक पहुँचने में सभी कष्ट सहे, ताकि वो भारतीय सैनिकों को प्रोत्साहित कर सकें और घायलों को देख सकें। उन्होंने अपना पूरा जीवन गांधीवादी विचारधारा और राष्ट्र की सेवा में बिताया और 29 अक्टूबर, 1985 को अंतिम सांस ली और राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में अमर हो गईं।
                                                                                                प्रस्तुति-अमन रहमान

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