उत्तराखंडदेहरादून

तिलोगा अमरदेव नाटक ने दर्शकों को किया अभिभूत

देहरादून। राजधानी दून में रविवार की शाम को मेघदूत नाट्य मंच की शानदार प्रस्तुति तिलोगा-अमरदेव के माध्यम से यादगार बना दिया। नगर निगम प्रेक्षागृह में मंचित तैडी की तिलोगा और भरपूर के बांके जवान अमरदेव सजवाण की प्रेम कथा का दर्शकों ने मुक्तकंठ से सराहा। प्रख्यात रंगकर्मी एस.पी. ममगाईं की परिकल्पना, शोध और निर्देशन में कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया। तिलोगा अमरदेव नाटक के मंचन की शुरुआत कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एम. एस. रावत, टपकेश्वर मंदिर के पीठाधीश्वर महंत कृष्ण गिरी जी, उद्योगपति राकेश ओबेरॉय, प्रसिद्ध उद्यमी तथा माया यूनिवर्सिटी के चेयरमैन मनोहरलाल जुयाल, बलवीर सिंह पंवार, श्याम सुंदर गोयल द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। आकाशवाणी देहरादून के वरिष्ठ उदघोषक विनय ध्यानी ने नाटक की कथावस्तु का सार दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। तिलोगा और अमरदेव की यह एक हृदयस्पर्शी प्रणय गाथा है, जो स्थानीय लोगों के अतिरिक्त अन्य तक नहीं पहुंची है। लंबे शोध के बाद इस पर श्री ममगाईं ने पहले अपनी पुस्तक उत्तराखंड के ऐतिहासिक नाटक प्रकाशित की और आज इसका मंचन किया गया। नाटक मूलतः हिंदी में था किंतु आंचलिक होने के नाते कतिपय स्थानों पर कथा की मांग के अनुरूप गढ़वाली भाषा के शब्दों व गीतों के प्रयोग का यथोचित प्रयोग किया गया था।

वस्तुतः यह कथानक करीब चार सौ वर्ष पुराना है और नाटक के जरिए इतिहास के पन्नों को सफलता से पलटा और परोसा गया।

गौरतलब है कि प्रसिद्ध नाट्य संस्था मेघदूत का यह रजत जयंती वर्ष है और इसी संदर्भ में मेघदूत ने उत्तराखंड की इस प्रेम कथा को नाटक का विषय बनाया। इससे पूर्व मेघदूत द्वारा दो अन्य नारी प्रधान नाटकों का मंचन किया जा चुका है। उनमें ज्योतिर्मय पद्मिनी और तीलू रोतेली मुख्य हैं। अपनी स्थापना से अब तक मेघदूत ने 25 वर्षों में डेढ़ दर्जन से अधिक प्रमुख नाटकों के कई कई शो कर चुकी है। मेघदूत की पहली प्रस्तुति अष्टावक्र नाटक था। उसके बाद पौराणिक कथानक पर आधारित संजीवनी नाटक का मंचन हुआ। तदनंतर औरंगजेब की आखिरी रात, यमपाल, संगमरमर पर एक रात, श्रीकृष्ण अवतार, वीर अभिमन्यु, ऊषा अनिरुद्ध, ज्योतिर्मय पद्मिनी, तीलू रोतेली और श् भय बिनु होई ना प्रीतिश् के बाद गढ़वाल की धरती पर घटित अमरदेव सजवाण और तैड़ी की तिलोगा के प्रेम प्रसंग के आधारित कथानक पर यह नाटक प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अलावा कई अन्य नाटक भी मेघदूत ने मंचित किए हैं।

उल्लेखनीय है कि कोरोनाकाल में जब सब कुछ थम गया था, उस दौर में रंगकर्म के क्षेत्र में व्याप्त सन्नाटे को मेघदूत ने भय बिनु होई न प्रीत नाट्य प्रस्तुति देकर तोड़ा था। गोस्वामी तुलसी दास की कृति रामचरित मानस के पंचम सोपान सुंदर कांड पर आधारित इस नाट्य प्रस्तुति को दर्शकों ने सराहा था। इस नाटक के अब तक कई शो हो चुके हैं। तिलोगा-अमरदेव नाटक में बाबा प्रभुदास की भूमिका उत्तम बंदूनी, ठाकुर गजे सिंह की भूमिका में नन्द किशोर त्रिपाठी, अमरदेव-अनिल दत्त शर्मा, तिलोगा-मिताली पुनेठा, जयंती-इंदु रावत, मध्यो असवाल-विजय डबराल, चौती-पूनम राणा, रामी-रश्मि जैना, जमन सिंह-गिरी विजय ढौंढियाल, सुखदेव की भूमिका में सिद्धार्थ डंगवाल, सहायक भूमिकाओं में अभिनव द्विवेदी, अखिलेश रावत, अनिल भंडारी, गोकुल पंवार, मौली जुगराण, पूनम राणा, धैर्य ढौंढियाल ने शानदार अभिनय से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। नाटक के लिए संगीत आलोक मलासी ने तैयार किया। मंच सज्जा डॉ. अजीत पंवार ने की। प्रस्तुति नियंत्रक अशोक मिश्रा थे। उनके साथ प्रस्तुति व्यवस्थापक दिनेश बौड़ाई थे। लंबे समय तक दर्शकों को यह नाटक याद रहेगा।

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