उत्तराखंडदेहरादून

बंड की नंदा डोली किरुली गांव से अगले पड़ाव के लिए रवाना, नंदा को विदा करते समय छलछला गयी ध्याणियों की आंखे

चमोली। 

“मेरी मैत की ध्याणी तेरू बाटू हेरदू रोलु,

हेरि चेजा फेरी चे जा तू मैत कु मुलुक”

जैसे पौराणिक लोकगीतों और जागारों के साथ किरुली गांव के बंड भुमियाल के मंदिर से बंड क्षेत्र के ग्रामीणों ने बंड की नंदा डोली को अगले पड़ाव गौना गांव के लिए विदा किया। इस अवसर पर दूर दूर से आये श्रद्धालुओं की आंखें छलछला गयी। खासतौर पर ध्याणियां मां नंदा की डोली को विदा करते समय फफककर रो पड़ी। बंड की नंदा लोकजात यात्रा 10 सितम्बर को उच्च हिमालयी नरेला बुग्याल में सम्पन्न होगी।

नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा शुरू होने पर एक बार फिर पूरा सीमांत जनपद चमोली नंदामय हो गया है। इस अवसर पर महावीर रावत, प्रेम सिंह चौहान, कैलाश बिष्ट, शिशुपाल सिंह झिंकवान्न, नवीन फरस्वान, हरेंद्र, ताज़बर सिंह बिष्ट, रघुनाथ सिंह फरस्वान, गोदम्बरी देवी, घुंघुरा देवी सहित कई ग्रामीण मौजूद थे।

गौरतलब है कि नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा सिद्धपीठ कुरुड मंदिर से शुरू होती है। यहाँ से प्रस्थान कर राजराजेश्वरी बधाण की नंदा डोली बेदनी बुग्याल में, कुरुड दशोली की नंदा डोली बालपाटा बुग्याल और कुरुड बंड की नंदा डोली नरेला बुग्याल में नंदा सप्तमी/ अष्टमी के दिन पूजा अर्चना कर, नंदा को समौण भेंट कर लोकजात संपन्न होती है। कई मायनों में नंदा देवी राजजात यात्रा से भी ज्यादा विस्तारित है नंदा की वार्षिक लोकजात।

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